आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिलने वाले EWS कोटे पर आज देश की सर्वोच्च अदालत ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने इस 10 फीसदी आरक्षण को वैध करार दिया है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडल्ब्यूएस आरक्षण को सही करार दिया। उन्होंने कहा कि यह कोटा संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और भावना का उल्लंघन नहीं करता है। माहेश्वरी के अलावा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने EWS कोटे के पक्ष में अपनी राय दी। उनके अलावा जस्टिस जेपी पारदीवाला ने भी गरीबों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को सही करार दिया।
फैसले के पक्ष में
चीफ जस्टिस यूयू ललित ने EWS कोटे के खिलाफ राय रखी है। उन्होंने कहा कि वह जस्टिस भट के निर्णय के साथ हैं। इस तरह EWS कोटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला 3:2 रहा। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस का आज आखिरी वर्किंग डे भी है। जस्टिस रवींद्र भट ने EWS कोटे पर अलग रुख अपनाया है। जस्टिस भट ने कहा कि संविधान सामाजिक न्याय के साथ छेड़छाड़ की अनुमति नहीं देता है। EWS कोटा संविधान के आधारभूत ढांचा के तहत ठीक नहीं है। जस्टिस भट ने कहा ये आरक्षण का लिमिट पार करना बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ है। जस्टिस भट ने कहा कि आरक्षण देना कोई गलत नहीं लेकिन EWS आरक्षण भी एससी,एसटी और ओबीसी के लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए।
फैसले के विपक्ष में
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा केवल आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे और समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। आरक्षण 50% तय सीमा के आधार पर भी EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50% आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा मैं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी से सहमत हूं और यह मानती हूं कि EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है और न ही यह किसी तरह का पक्षपात है। यह बदलाव आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर ही देखना जाना चाहिए। इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है।जबकि जस्टिस पारदीवाला ने कहा जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस बेला त्रिवेदी से सहमत होते समय मैं यहां कहना चाहता हूं कि आरक्षण का अंत नहीं है। इसे अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए, वर्ना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा। आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है। यह अभियान 7 दशक पहले शुरू हुआ था। डेवलपमेंट और एजुकेशन ने इस खाई को कम करने का काम किया है।