संन्यासी बनना, आश्रम में रहना… हमारी मर्जी’, सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर महिलाओं का जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2024 को ईशा फाउंडेशन में रहने वाली दो महिलाओं के मामले में तमिलनाडु के कोयंबटूर में आश्रम की जांच पर रोक लगा दी है। यह मामला उन महिलाओं के माता-पिता की अर्जी पर शुरू हुआ था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी बेटियों को ईशा फाउंडेशन में अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया है।
महिलाओं ने अदालत में कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और संपूर्ण स्वेच्छा से उन्होंने संन्यास लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों महिलाओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी प्रकार के दबाव में नहीं हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वे आश्रम से बाहर जाने के लिए स्वतंत्र हैं और उनके माता-पिता समय-समय पर उनसे मिलने आते रहे हैं।
मामला कैसे शुरू हुआ?
मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें कहा गया कि आश्रम में लड़कियों को जबरन संन्यासी बनने के लिए बाध्य किया जाता है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ इस मामले में हाईकोर्ट ने जांच के आदेश दिए थे, जिसके बाद 150 पुलिसकर्मियों की टीम ने आश्रम की जांच शुरू की थी। याचिकाकर्ता, एक रिटायर्ड प्रोफेसर, ने आरोप लगाया कि उनकी बेटियों को गुमराह करके संन्यासी बनाया गया और उन्हें माता-पिता से मिलने नहीं दिया जा रहा था।
कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस 30 सितंबर 2024 के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में सिर्फ रिपोर्ट दाखिल करेगी, लेकिन कोई अन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी। साथ ही, कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 18 अक्टूबर 2024 तय की है।
इस मामले ने धार्मिक स्वतंत्रता, संन्यासी जीवन की स्वतंत्रता और परिवार के अधिकारों के मुद्दों को एक साथ ला दिया है, और सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर ध्यान दे रही है।