Sunday, June 8, 2025
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भांप नहीं पाए सुखविंदर सुक्खू ;’ऑपरेशन लोटस’ का वो पैटर्न, जिससे सीएम की कुर्सी जानी तय

भांप नहीं पाए सुखविंदर सुक्खू ;’ऑपरेशन लोटस’ का वो पैटर्न, जिससे सीएम की कुर्सी जानी तय

राज्यसभा चुनाव ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को तबाह कर दिया है। बहुमत के बावजूद कांग्रेस पहाड़ी राज्य में एक भी सीट जीतने में नाकाम रही. राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की हार से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कुर्सी पर संकट खड़ा हो गया है.

कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि सरकार बचाने के लिए पार्टी मुख्यमंत्री को हिमाचल स्थानांतरित करेगी। इसलिए पार्टी ने हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा और डिप्टी सीएम डी.के. को भेजा. पर्यवेक्षकों के रूप में शिमला गए। कर्नाटक से शिवकुमार.

स्तंभकार डी.के. शिवकुमार ने बीजेपी पर हिमाचल में सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया. शिवकुमार के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने की साजिश है.

वरिष्ठ कांग्रेसी पवन बंसल ने हिमाचल के सियासी नाटक को ऑपरेशन लोटस कहा है. बंसल के मुताबिक चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हार के बावजूद बीजेपी अपनी नापाक हरकत से बाज नहीं आ रही है.

हालांकि, कांग्रेस के भीतर हिमाचल के इस सियासी ड्रामे के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि विधायकों के बगावत का पैटर्न ऑपरेशन लोटस का है, जिसे समय रहते सुक्खू भांप नहीं पाए.

सुखविंदर सिंह सुक्खू क्यों चूके, 2 पॉइंट्स

राज्यसभा चुनाव में वोटिंग से पहले तक सुक्खू को नहीं पता था कि कितने विधायक बगावत कर रहे हैं, जबकि सरकार का इंटेलिजेंस विभाग उन्हीं के पास है.
क्रॉस वोटिंग करने के बाद सभी विधायक पंचकूला चले गए, लेकिन हिमाचल पुलिस उन्हें नहीं रोक पाई. हिमाचल सरकार का गृह विभाग भी सुक्खू के पास ही है.

ऑपरेशन लोटस का लेटेस्ट पैटर्न क्या है?

पहले साइलेंट तरीके से विधायक एकजुट होते हैं और किसी बड़े अवसर पर बगावत करते हैं.
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में यह बड़ा अवसर राज्यसभा का चुनाव ही बना है.
बगावत करने वाले विधायकों को तुरंत बीजेपी शासित राज्यों में ले जाया जाता है.
विधायक तब तक उस राज्य में रहते हैं, जब तक की सरकार गिर नहीं जाती है.
विधायकों के बगावत के बाद कानूनी टीम सक्रिय हो जाती है. सरकार गिराने में यह टीम भी अहम भूमिका निभाती है.

अब 3 उदाहरण से इस पैटर्न को समझिए…

1. कर्नाटक में सत्र से पहले विधायक गायब हो गए

सरकार गिराने का यह पैटर्न पहली बार कर्नाटक 2019 में देखा गया. जुलाई 2019 में कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने साइलेंट तरीके से बगावत का बिगुल फूंक दिया. विधायकों का नेतृत्व रमेश जरकिहोली कर रहे थे.

सभी विधायक कर्नाटक छोड़ तुरंत गोवा चले गए और फिर वहां से महाराष्ट्र. सरकार गिरने तक विधायकों ने यहीं डेरा डाले रखा. विधायकों के बगावत के बाद राजभवन भी सक्रिय हो गया.

मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. कोर्ट में केस जाने के बाद कुमारस्वामी सरकार ने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराया, जिसमें उसकी हार हो गई.

2. राज्यसभा चुनाव से पहले विधायक भाग गए

2020 में मध्य प्रदेश में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए आयोग ने चुनाव की घोषणा की. चुनाव की घोषणा के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस के 27 विधायक गुपचुप तरीके से कर्नाटक भाग गए. सभी विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के थे.

कर्नाटक पहुंचने के बाद विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई.

कमलनाथ ने इसके बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कमलनाथ के इस्तीफा देते ही शिवराज सिंह चौहान ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. राज्यपाल ने इस दावे को स्वीकर लिया और शिवराज को पद की शपथ दिलवा दी.

इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के 27 विधायकों के रिक्त सीट पर उपचुनाव कराए गए, जिसमें से 18 विधायकों ने जीत हासिल की.

3. MLC इलेक्शन के तुरंत बाद निकल गए शिवसैनिक

2022 के जून में महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव प्रस्तावित थे. चुनाव में सभी पार्टियों ने अपने-अपने कैंडिडेट उतारे. मतदान के दौरान शिवसेना के विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी. क्रॉस वोटिंग के तुरंत बाद विधायक सूरत के लिए निकल गए.

विधायकों के सूरत जाते ही महाविकास अघाड़ी सरकार को ऑपरेशन लोटस का डर सताने लगा. इधर, बीजेपी ने अपने विधायकों की किलेबंदी मजबूत कर दी.

सूरत से बागी विधायक गुवाहाटी पहुंच गए और शिवसेना पर ही दावा ठोक दिया. इसी बीच राजभवन एक्टिव हुआ और राजभवन ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन ठाकरे को राहत नहीं मिली. इसके बाद उद्धव ने इस्तीफा दे दिया. उद्धव के इस्तीफा देने के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए. शिंदे ही इस बगावत का नेतृत्व कर रहे थे.

कथित ऑपरेशन लोटस क्या है?

कथित तौर पर यह एक सियासी ऑपरेशन है, जिसे सत्ताधारी बीजेपी के साथ जोड़ा जाता है. सत्ताधारी बीजेपी किसी भी राज्य में विपक्षी पार्टियों के सरकार को अस्थिर करने की जो प्रक्रिया अपनाती है, उस प्रक्रिया को ऑपरेशन लोटस कहा जाता है.

2008 में ऑपरेशन लोटस का जिक्र पहली बार कर्नाटक में हुआ था. उस वक्त कर्नाटक में बहुमत न होते हुए भी भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी और विपक्ष के 7 विधायकों को तोड़ दिया था. यह विधायक कांग्रेस और जेडीएस के थे.

2019 में डेक्केन हेराल्ड के साथ एक साक्षात्कार में कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने ऑपरेशन लोटस को सही ठहराया था. उन्होंने कहा था कि यह लोकतंत्र के लिए सही है और इस्तीफा देकर पाला बदलने में कोई दिक्कत नहीं है.

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