ज्ञानवापी और मथुरा के शाही ईदगाह पर दावों के बीच समझिए अयोध्या विवाद के समय कांग्रेस ने 1991 में क्या नियम बनाया था?
Breaking desk | Rajneetik Tarkas
लंबे समय से वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद का विवाद गहराया हुआ है. हाल ही में इलाहबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में कार्रवाई को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि एडवोकेट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के जरिए शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण कर सकेंगे. 18 दिसंबर को होनेवाली अगली सुनवाई में सर्वेक्षण की रूपरेखा तय होने की उम्मीद है.
दोनों मस्जिदों के विवाद के बीच अयोध्या विवाद के समय 1991 में बनाया गया पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Places Of Worship Special Provisions Act 1991) भी काफी चर्चाओं में है. तो चलिए आज हम समझते हैं कि क्या है ये कानून और इसे कब और क्यों बनाया गया था.
क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991?
साल 1990 में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए पूरे देश में रथ यात्रा निकाली. इस यात्रा के दौरान उनकी बिहार में गिरफ्तारी हो गई. ये वही समय था जब कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं. जिसके चलते पूरे देश में काफी तनावपूर्ण माहौल हो गया था, खासकर राममंदिर की मांग जिस राज्य में की जा रही थी यानी उत्तरप्रदेश में.
उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे पीवी नरसिम्हा राव. ऐसे में देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिए साल 1991 में 18 सितंबर को पूजा स्थल अधिनियम (Places Of Worship Special Provisions Act 1991) लाया गया.
पूजा स्थल अधिनियम की बात करें तो ये कानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 तक जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे, वो साल 1947 के बाद भी अपने उसी स्वरूप में रहेंगे यानी उनके पुराने स्वरूप में कोई बदलाव नहीं होगा. इसमें साफ कहा गया था कि साल 1947 से पहले किसी भी धार्मिक स्थल को किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल में नहीं बदला जा सकता है. इस कानून का उल्लंघन करने वालों पर जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया था. हालांकि इस कानून में जेल और जुर्माना केस के हिसाब से तय करने की बात लिखी गई है.
रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले में क्यों लागू नहीं हुआ ये कानून?
सभी के जहन में ये सवाल बार-बार उठता है कि आखिर राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले में पूजा स्थल कानून 1991 को लागू क्यों नहीं किया गया. दरअसल इसके पीछे की वजह इस कानून की धारा 5 है. जिसके तहत अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया था. अब सवाल ये उठता है कि अयोध्या विवाद इससे अलग क्यों रखा गया. इसके पीछे की वजह ये है कि अयोध्या विवाद का मामला साल 1947 यानी भारत की आजादी के पहले से अदालत में था. ऐसे में 1991 में लागू किए गए इस कानून के तहत वही मामले आते हैं जो 1947 से या उसके बाद से अदालत में आए हैं.
बता दें अयोध्या में विवादित मस्जिद पूजा स्थल कानून 1991 के बनने से पहले ही कानूनी जांच के दायरे में थी, इसलिए कानून ने इसकी संरचना को छूट दी. इसके अगले साल ही बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया था. हालांकि इस कानून के बनने की वजह भी अयोध्या विवाद ही था. साथ ही इस कानून के दायरे में उन पूजा स्थलों को भी शामिल किया गया जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तहत आते हैं और उनके रखरखाव पर कोई प्रतिबंध नहीं है.