“एक राष्ट्र – एक नाम : भारत” – हस्ताक्षर अभियान का शुभारंभ
‘इंडिया’ नहीं, अब केवल ‘भारत’ कहें, अपने राष्ट्र की संस्कृति से जुड़ें – डॉ. अतुल कोठारी
नई दिल्ली, 21 फरवरी: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर, पूरे भारत में 200 से अधिक स्थानों पर ‘एक राष्ट्र – एक नाम : भारत’ नामक राष्ट्रीय हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया। यह अभियान राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान और गौरव को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।
अभियान के तहत, प्रमुख व्यक्तियों से हस्ताक्षर एकत्रित किए जा रहे हैं और यह 21 फरवरी से 21 मार्च तक देशभर में जारी रहेगा। इसमें छात्रों, शिक्षकों, वकीलों, जन प्रतिनिधियों और अन्य प्रमुख हस्तियों का सक्रिय योगदान सुनिश्चित किया गया है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने अभियान के शुभारंभ पर कहा, “हमारे राष्ट्र का सही नाम ‘भारत’ है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान अपनाया गया ‘इंडिया’ नाम अब हमारी पहचान का हिस्सा नहीं होना चाहिए। हम इसे त्यागकर ‘भारत’ शब्द का ही प्रयोग करें, क्योंकि यह नाम हमारी संस्कृति, जीवन दृष्टिकोण और गौरव का प्रतीक है।”
डॉ. कोठारी ने आगे कहा कि इस उद्देश्य के लिए 10 लाख हस्ताक्षरों की याचिका राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी, और इस अभियान के माध्यम से भारतवासियों को मानसिक रूप से ‘भारत’ नाम से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।
भारत के संविधान में भी यह स्पष्ट किया गया है कि हमारा राष्ट्र ‘भारत’ है, न कि ‘इंडिया’। संविधान के अनुच्छेद-1 में इस बात को साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि ‘इंडिया’ जो ‘भारत’ है, वह इस राष्ट्र का नाम है। बावजूद इसके, अंग्रेजी में ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग अब भी जारी है, जिसे अनुचित माना गया है। डॉ. कोठारी ने इसे बदलने के लिए सरकार से पहल करने की अपील की है।
जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ और ‘प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ जैसे शब्दों का उपयोग किया, जिससे इस दिशा में एक सकारात्मक संदेश गया।
अभियान के आयोजकों का कहना है कि यह हस्ताक्षर अभियान एक सांस्कृतिक जागरूकता लाने और भारतीय नागरिकों को अपने राष्ट्र के नाम ‘भारत’ से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए जाएंगे कि सरकारी संस्थाओं और योजनाओं के नाम में ‘भारत’ शब्द का ही प्रयोग हो, चाहे भाषा कोई भी हो।
यह अभियान भारत के सांस्कृतिक गौरव को पुनः स्थापित करने और उसे वैश्विक स्तर पर सम्मानित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।