सनातन धर्म में महाकुंभ को विशेष स्थान प्राप्त है। इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व वेदों में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है। महाकुंभ का आयोजन बारह वर्षों के अंतराल पर होता है और इसमें स्नान करना आत्मा को शुद्धि, पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
वेदों में महाकुंभ का उल्लेख
वेदों में कुम्भ पर्व को जीवन के पुनर्जन्म, शारीरिक व आत्मिक शुद्धि और लोक-परलोक में शुभ फलदायक माना गया है। इसके कुछ उल्लेख निम्न प्रकार हैं:
- ऋग्वेद (10.89.7)
“कुम्भ-पर्व में जाने वाला मनुष्य दान, होम और सत्कर्मों के माध्यम से अपने पापों को वैसे ही नष्ट करता है जैसे कुठार (कुल्हाड़ी) वन को काट देती है।”इस मंत्र में कुम्भ स्नान को पापों का हरण करने वाला और आत्मिक शुद्धि प्रदान करने वाला बताया गया है।
- यजुर्वेद (19.87)
“कुम्भ पर्व मनुष्य को इहलोक में शारीरिक सुख और जन्म-जन्मांतर में उत्कृष्ट सुख प्रदान करता है।”यह मंत्र कुम्भ के पुण्य लाभ को रेखांकित करता है, जो शारीरिक और आत्मिक दोनों स्तर पर कल्याणकारी है।
- अथर्ववेद (19.53.3)
“पूर्ण कुम्भ बारह वर्षों के बाद आता है। इसे प्रयाग जैसे तीर्थों में देखा जाता है। कुम्भ का समय ग्रह-राशि और योग के आधार पर तय होता है।”इस मंत्र में कुम्भ के खगोलीय महत्व और इसके आयोजन की वैदिक मान्यता को दर्शाया गया है।
महाकुंभ में स्नान के पुण्य लाभ
महाकुंभ में स्नान करना आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक लाभकारी माना गया है। इसके लाभ निम्नलिखित हैं:
- पापों का नाश
कुम्भ स्नान पापों को नष्ट करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। - मोक्ष की प्राप्ति
यह मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। - धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति
कुम्भ में स्नान करने वाले को वैदिक मंत्रों और सत्कर्मों का पुण्य फल मिलता है। - लोक-परलोक में सुख
कुम्भ स्नान से मनुष्य को इस लोक में शांति और अगले जन्मों में सुख की प्राप्ति होती है। - ग्रह दोषों का निवारण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुम्भ स्नान ग्रह दोषों और कष्टों का निवारण करता है।
महाकुंभ: एक प्राचीन धरोहर
वेदों और पुराणों में महाकुंभ का महत्व इसे वैदिक धर्म का अभिन्न अंग सिद्ध करता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति, धार्मिक आस्था और परंपराओं की एक अनमोल धरोहर है। गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित “कुंभ पर्व” पुस्तक के अनुसार, संत समाज इसे वैदिक मान्यताओं से प्रमाणित करता है।