महाकुंभ 2025 का आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को सुदृढ़ करने का प्रतीक है। जानिए भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा कुम्भ मेले के आरंभ और उनके उद्देश्य के बारे में।
महाकुंभ 2025: कुम्भ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का सबसे बड़ा उत्सव है। यह मेला चार प्रमुख तीर्थों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) में आयोजित किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुम्भ मेले की शुरुआत किसने की थी और इसे धार्मिक दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण क्यों माना गया?
कुम्भ मेले का उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है, जो इसकी प्राचीनता का प्रमाण है। लेकिन इसे व्यवस्थित और धार्मिक स्वरूप देने का श्रेय भगवान आदि शंकराचार्य को जाता है।
कुम्भ के आद्यप्रवर्तक: भगवान आदि शंकराचार्य
कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और धर्म को एक मंच पर लाने का साधन है। भगवान आदि शंकराचार्य ने इस मेले को प्रचारित और व्यवस्थित किया।
विभिन्न सम्प्रदायों के साधु-संत, जिनकी उपासना पद्धतियां अलग-अलग हैं, कुम्भ मेले में एक साथ आते हैं। यह आयोजन धर्म और संस्कृति की एकता का प्रतीक बन चुका है। भगवान शंकराचार्य ने कुम्भ मेले को धार्मिक संस्कृति को सुदृढ़ करने और समाज कल्याण के लिए प्रचारित किया।
आदि शंकराचार्य और कुम्भ का उद्देश्य
भगवान शंकराचार्य ने कुम्भ मेले की शुरुआत धार्मिक परंपराओं को मजबूत करने और धर्म के प्रचार के लिए की। कुम्भ मेला साधु-संतों के लिए एक प्रमुख आयोजन बन गया, जो लोक-कल्याण और धर्म को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है।
यह मेला साधु-महात्माओं का मुख्य केंद्र है। उनकी उपस्थिति ही कुम्भ के जीवन का आधार है। भगवान शंकराचार्य का उद्देश्य कुम्भ मेले के माध्यम से समाज को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से जागरूक करना था।
कुम्भ की वर्तमान स्थिति
वर्तमान समय में कुम्भ मेला धार्मिकता और सांस्कृतिकता के साथ-साथ भौतिकता का भी केंद्र बन गया है। हालांकि, भगवान शंकराचार्य द्वारा स्थापित मूल उद्देश्य, अर्थात् लोक-कल्याण और धर्म का प्रचार, कहीं-कहीं कमजोर पड़ता दिखता है।
यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम कुम्भ मेले के वास्तविक उद्देश्य को बनाए रखें। गृहस्थ और साधु-महात्मा, दोनों को भगवान शंकराचार्य के विचारों के अनुरूप मनसा, वाचा और कर्मणा से योगदान देना चाहिए।
कुम्भ का महत्व और संदेश
कुम्भ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय सनातन धर्म की अखंडता और एकता का प्रतीक है। यह मेला हमें धर्म, संस्कृति और समाज कल्याण के लिए समर्पित रहने का संदेश देता है। भगवान आदि शंकराचार्य की दूरदृष्टि और उनके आदर्श आज भी हमें प्रेरणा देते हैं।
आइए, महाकुंभ 2025 के माध्यम से उनके विचारों और उद्देश्यों को पुनः जागृत करें और इस पर्व के महत्व को संरक्षित रखें।