सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: बिना उचित मुआवजे के नहीं हो सकता भूमि अधिग्रहण
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Meta Description: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उचित मुआवजा दिए बिना संपत्ति का अधिग्रहण असंवैधानिक है। कोर्ट ने 2019 की कीमत पर मुआवजे का आदेश दिया। पढ़ें पूरी जानकारी।
संपत्ति का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से उचित मुआवजा दिए बिना वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार न हो, लेकिन यह संवैधानिक अधिकार है और इसका संरक्षण आवश्यक है।
यह फैसला बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट (BMICP) से जुड़े भूमि अधिग्रहण के 20 साल पुराने मामले में आया। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के 2022 के फैसले को पलटते हुए संपत्ति मालिकों को 2019 की बाजार कीमत के आधार पर मुआवजा देने का आदेश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
- भूमि अधिग्रहण: 2003 में कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरियाज डेवलपमेंट बोर्ड ने परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की।
- मुआवजे में देरी: नवंबर 2005 में जमीन का कब्जा ले लिया गया, लेकिन 22 साल तक मालिकों को मुआवजा नहीं दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की बेंच ने राज्य सरकार को इस मामले में ढिलाई के लिए फटकार लगाई और कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के हितों की रक्षा करे।
मुआवजे का निर्धारण: 2003 नहीं, 2019 की कीमत लागू
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 21 साल पुरानी कीमत से मुआवजा देना संपत्ति के संवैधानिक अधिकार का अपमान है।
- फैसले का आदेश: राज्य सरकार को 2019 की कीमत के अनुसार मुआवजा तय करना होगा।
- संवैधानिक प्रावधान: कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 300-A का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि संपत्ति का अधिग्रहण केवल कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके ही किया जा सकता है।
44वें संविधान संशोधन और संपत्ति का अधिकार
1978 में हुए 44वें संविधान संशोधन के बाद संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रहा। हालांकि, यह आज भी अनुच्छेद 300-A के तहत एक संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार की रक्षा करते हुए भूमि मालिकों के पक्ष में फैसला सुनाया।
सरकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट की नसीहत
- भूमि अधिग्रहण मामलों में तेजी से निर्णय लें।
- नागरिकों को उचित और समय पर मुआवजा प्रदान करें।
- प्रक्रियाओं का पालन कर संपत्ति अधिकारों का सम्मान करें।
अदालती प्रक्रिया और आगे के विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को यह अधिकार दिया है कि अगर वे तय मुआवजे से संतुष्ट नहीं हैं, तो वे इसे कानूनी रूप से चुनौती दे सकते हैं।