मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल का निधन, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। ‘अंकुर’, ‘मंडी’ और ‘निशांत’ जैसी कालजयी फिल्मों के निर्माता को सेलेब्स और परिवार ने दी अंतिम विदाई।
श्याम बेनेगल का निधन: सिनेमा जगत में शोक की लहर
मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी अनोखी सोच और शानदार फिल्मों से एक नई लहर पैदा की, अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका मंगलवार को मुंबई में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। बेनेगल को तीन बंदूकों की सलामी दी गई।
बेनेगल का निधन सोमवार को हुआ। वह लंबे समय से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। उन्होंने कुछ ही दिन पहले, 14 दिसंबर को, अपना 90वां जन्मदिन मनाया था। उनका अंतिम संस्कार दादर के शिवाजी पार्क श्मशान घाट पर दोपहर करीब तीन बजे किया गया।
राजकीय सम्मान और सिनेमा के दिग्गजों की मौजूदगी
बेनेगल की अंतिम यात्रा में उनकी पत्नी नीरा और बेटी पिया के साथ कई फिल्मी हस्तियां मौजूद थीं। अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, रजित कपूर, कुलभूषण खरबंदा, इला अरुण, और निर्देशक हंसल मेहता सहित कई सितारे इस महान फिल्मकार को अंतिम विदाई देने पहुंचे।
इस अवसर पर लेखक-कवि गुलजार, गीतकार जावेद अख्तर, अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह, अभिनेता श्रेयस तलपड़े, दिव्या दत्ता, और फिल्म निर्माता शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर भी उपस्थित थे।
गुलजार का श्याम बेनेगल को श्रद्धांजलि संदेश
गुलजार ने श्याम बेनेगल की तारीफ करते हुए कहा,
“श्याम बेनेगल सिनेमा में जो क्रांति लाए, वह कभी दोबारा नहीं आएगी। वह सिर्फ गए नहीं हैं, बल्कि अपने साथ बदलाव की उस लहर को ले गए। उनकी यादें और योगदान हमेशा हमारे साथ रहेंगे।”
भारतीय सिनेमा के पथप्रदर्शक
बेनेगल को ‘अंकुर’, ‘मंडी’, ‘निशांत’ और ‘जुनून’ जैसी कालजयी फिल्मों के लिए जाना जाता है। उनकी फिल्मों ने समाज के कई अनछुए पहलुओं को बड़े पर्दे पर दिखाया। उनकी 1976 की फिल्म ‘मंथन’ हाल ही में कान फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित हुई थी, जिसे फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने संरक्षित किया।
श्रेयस तलपड़े और अन्य सेलेब्स की प्रतिक्रिया
बेनेगल की फिल्म ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ में मुख्य भूमिका निभाने वाले अभिनेता श्रेयस तलपड़े ने कहा,
“यह मेरे करियर का सबसे यादगार अनुभव था। उनकी बातें मंत्रमुग्ध करने वाली होती थीं। यह सिनेमा जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है।”
श्याम बेनेगल का योगदान
श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा में उस दौर का प्रतीक हैं, जिसने व्यावसायिक और कला सिनेमा के बीच एक सेतु का काम किया। उनकी फिल्मों में समाज का व्यंग्यात्मक, परंतु सच्चा चित्रण देखने को मिलता है।