विदेशों में प्रकाश मेहरा की प्रकाशित पुस्तक “वे टू जर्नलिज्म” की धूम !
भारत में पत्रकारिता का जन्म उस वक्त हुआ जब देश स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था। पत्रकारिता या यूं कहें हिन्दी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाचार पत्रों ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को काटने का काम किया। यह वो दौर था जब छिप-छिपकर अखबार निकाले जाते थे। अपने लेखों से संपादक देशवासियों में ऊर्जा का संचार करते थे।
समाज की कुप्रथाओं पर बेबाकी से लिखते थे। इसी क्रम में पत्रकारिता पर चर्चित पुस्तक “वे टू जर्नलिज्म” देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है। इसके साथ ही अगर वर्तमान पत्रकारिता की बात करें तो प्रकाश मेहरा की प्रकाशित पुस्तक वे “टू जर्नलिज्म” में समाज के विरोधाभासों पर तीखे कटाक्ष के साथ ही पत्रकारिता के संघर्षों और भविष्य की पत्रकारिता का वर्णन इस पुस्तक में वर्णित है।
सहानुभूति पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा
प्रकाश मेहरा कहते हैं कि “यह सकारात्मक होना चाहिए, कि हम उन लोगों के साथ काम कर रहे हैं, जो पत्रकारिता कर रहे हैं और अपनी कहानियों में अपनी मानवता को शामिल कर रहे हैं।” “अगर ऐसा ज़रूरी है, तो वे अभी भी निष्पक्ष हो सकते हैं। वे अभी भी अत्यधिक पेशेवर हो सकते हैं। अगर उन्हें उनके भावनात्मक जीवन में समर्थन मिले, तो वे अपना काम बेहतर तरीके से कर सकते हैं।”
सहानुभूति पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें उन लोगों से जुड़ने की अनुमति देती है जिनकी कहानियों को हम साझा करते हैं और आगे बढ़ाते हैं। लेकिन ऐसे माहौल में जहाँ ब्रेकिंग न्यूज़ की क्षमता असीमित है, जहाँ समय सीमाएँ और लक्ष्य और बाहरी दबाव बहुत ज़्यादा हैं, प्रबंधकों के लिए सहानुभूति दिखाना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब वे अपने तनाव के सैंडविच में फंस सकते हैं।
पुस्तक में, मैंने लिखा है “नेतृत्व में सहानुभूति प्रभावी और समावेशी संस्कृतियों को बनाने और बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। सहानुभूति हमें दक्षता से वंचित नहीं करती है। इसके बजाय, जब यह किसी संस्कृति का हिस्सा बन जाती है, तो यह उसे प्रोत्साहित करने की अधिक संभावना होती है। सहानुभूति हमें यह पहचानने में मदद करती है कि हम सभी मुश्किलों से गुज़रते हैं और कभी-कभी अंधेरे में साथ होना अच्छा होता है, बिना किसी व्यक्ति को सहारा देने या किसी की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश किए।”
जनता का विश्वास बनाए रखना: प्रकाश मेहरा
पत्रकार जनता का भरोसा बनाए रखने का प्रयास करते हैं, क्योंकि भरोसे की नींव पर ही सूचना एकत्रित और आदान-प्रदान की जाती है। जनता को पत्रकारों पर भरोसा करना चाहिए कि वे सटीक और मूल्यवान जानकारी प्रदान करेंगे, अन्यथा पत्रकारों के कामों की न तो तलाश की जाएगी और न ही उन पर विश्वास किया जाएगा। सूचना के स्रोतों को पत्रकारों पर भरोसा करना चाहिए कि वे अपनी पहचान की रक्षा करेंगे, जहाँ लागू हो, और उन्हें या उनके विचारों को गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं करेंगे। इसे एक नैतिक मूल्य के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन यह एक व्यावहारिक मूल्य भी है: एक मीडिया आउटलेट व्यवसाय नहीं कर सकता है यदि वह स्रोत प्राप्त नहीं कर सकता है या जनता द्वारा उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
जिसकी जेब में मोबाइल वही पत्रकार
सूचना प्रोद्योगिकी के इस युग में तो हर आदमी खबरची की भूमिका अदा करने लगा है। क्योंकि आप अपने आसपास जो कुछ भी हो रहा है, उसे सोशल मीडिया के जरिए वायरल कर दुनिया के किसी भी कोने में उस घटनाक्रम का आंंखों देखा हाल पहुंचा रहे हैं। समय का चक्र घूमता रहता है। यही प्रकृति का नियम है। लेकिन वह चक्र इतनी तेजी से घूमेगा, इसकी कल्पना शायद प्रख्यात भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने भी नहीं की होगी।
ऐसी स्थिति में मीडिया के भावी स्वरूप की भविष्यवाणी करना बेहद कठिन है। अगर इतनी ही तेजी से समय का चक्र घूमता रहा तो हो सकता है कि पढ़ा जाने वाला छपा हुआ अखबार भी टेलीग्राम की तरह कहीं इतिहास न बन जाए। वैसे भी अखबार कागज के साथ ही ई पेपर के रूप में कम्प्यूटर, लैपटाप या मोबाइल फोन पर आ गए हैं।