त्रिकोणीय मुकाबला तय, सपा-कांग्रेस गठबंधन से बसपा को लगेगा बड़ा झटका; बीजेपी को मिल सकता है फायदा
कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन किया है। ऐसे में अब मायावती की बसपा अकेली रह जाएगी. एसपी-कांग्रेस गठबंधन से बीएसपी को एनडीए से ज्यादा नुकसान होने की आशंका है. इस चुनाव में बसपा का प्रदर्शन संभवत: 2019 के चुनाव से भी खराब है. क्योंकि अब राज्य में त्रिकोणीय लड़ाई होती नजर आ रही है.
पिछले चुनाव में सपा और रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर बसपा को 10 सीटें मिली थी, लेकिन इसबार ऐसा होना मुश्किल लग रहा है क्योंकि बसपा 2024 के चुनाव में अकेले पड़ गई है. लोकसभा चुनान 2024 में बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस लगातार प्रयास कर रही है. लोकसभा चुनाव की दृष्टि से उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है क्योंकि यूपी में लोकसभा की 80 सीटे हैं. ऐसे में कांग्रेस चाहती थी की सपा-रालोद के साथ बसपा भी कांग्रेस के साथ आ जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बसपा तो छोड़िए रालोद ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया.
बीजेपी को लोकसभा चुनाव में कैसे होगा फायदा?
गठबंधन की अटकलों पर लगाम लगाते हुए मायावती कई बार कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी को कांग्रेस और सपा के वोट ट्रांसफर नहीं होते हैं. ऐसे में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करने के लिए वह अटल हैं. ऐसे में यूपी में क्लीन स्वीप के लिए निकली भाजपा को फायदा हो सकता है, क्योंकि भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के साथ गठबंधन कर लिया है, वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल के साथ गठबंधन किया है.
ऐसे में साफ हो गया है कि इस बार उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है. दलित-मुस्लिम और पिछणों की आबादी वाली सीट पर भी बीजेपी को फायदा हो सकता है, क्योंकि इन सीटों पर सपा-कांग्रेस और बसपा में वोट बंटने की उम्मीद है. ऐसे में एनडीए की जीत की संभावना बढ़ जाएगी.
2019 चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट
पिछले चुनाव की बात करें तो बसपा-सपा और रालोद के एक साथ चुनाव लड़ने पर एनडीए को उत्तर प्रदेश में 64 सीट ही मिल पाई थी. वहीं बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट पर ही चुनाव जीत पाई थी, जहां से सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ा था. अमेठी से राहुल गांधी भी चुनाव हार गए थे, अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी ने कमल खिलाया था. वहीं साल 2014 की बात करें तो सपा-बसपा में गठबंधन नहीं होने से एनडीए को प्रदेश में 73 सीटें मिली थी.
इस बार ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस-सपा के गठबंधन से इन दोनों पार्टियों को कुछ फायदा हो सकता है, लेकिन बसपा के लिए राह कठिन हो गई है. क्योंकि मायावती के लिए सिर्फ दलित वोट के दमपर सीट निकालना मुस्किल होगा. इधर बीजेपी कई तरह की योजनाएं भी चला रही है. ऐसे में बीजेपी को लाभ मिलना तय है.