कांग्रेस 15 साल में पहली बार सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी -बीजेपी
15 साल में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के कम सीटों के साथ चुनाव लड़ने की संभावना है. इसका मुख्य कारण यह है कि गठबंधन राजनीति एक बार फिर घरेलू राजनीति पर हावी हो गई है। दोनों दलों द्वारा अब तक बनाए गए मसौदे के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 410 में से 400 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस क्रमशः 350 और 370 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
2009 में बीजेपी ने 2014 में 433 सीटों पर चुनाव लड़ा. – 422 सीटों से, और 2019 में – 437 सीटों से। कांग्रेस ने भी पिछले 15 वर्षों में 440 उम्मीदवारों के साथ 400 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है, 2014 में 2019 में – 421 उम्मीदवार।
बीजेपी 40 तो कांग्रेस 28 दलों के साथ मैदान में उतरने को तैयार
पहली बार बीजेपी और कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा दलों के साथ गठबंधन करने में जुटी हैं. बीजेपी ने अब तक 40 दलों के साथ गठबंधन तैयार कर लिया है. इनमें एनपीपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी शामिल है. बीजेपी ने पिछले 6 महीने में करीब 10 दलों को जोड़ा है. पार्टी टीडीपी, शिरोमणि अकाली दल, मनसे, बीआरएस और एआईएडीएमके जैसे दलों को भी साधने की तैयारी में है.
दूसरी तरफ कांग्रेस भी इंडिया गठबंधन में शामिल होकर लोकसभा चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. इंडिया गठबंधन में अभी 27 दल शामिल हैं. कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी और प्रकाश अंबेडकर की पार्टी को साधने में जुटी है.
2024 के मैदान में कौन कितने सीटों पर उतरेगा
साल 2019 में 22 दलों के साथ बीजेपी चुनाव में उतरी थी. 543 में से 437 सीटों पर बीजेपी ने और बाकी बची 105 सीटों पर एनडीए के अन्य दलों ने उम्मीदवार उतारे थे. 437 में से बीजेपी को 303 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि सहयोगी दल 105 पर लड़कर 49 सीटें जीतने में कामयाब हुए थे.
बीजेपी इस बार यूपी में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. यूपी की 70-72 सीटों पर बीजेपी इस बार उम्मीदवार उतार सकती है. पिछली बार बीजेपी ने 78 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.
बिहार में भी गठबंधन का दायरा बड़ा हो गया है. ऐसे में इस बार बीजेपी की यहां 17 से कम ही सीटों पर चुनाव लड़ने की चर्चा है. बीजेपी बिहार में 15-17 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.
कर्नाटक में भी पिछली बार की तुलना में बीजेपी इस बार कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी. वजह बीजेपी का जेडीएस से गठबंधन है. जेडीएस कम से कम 3 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है.
हरियाणा में भी बीजेपी समझौते के तहत जजपा को 2 सीटें दे सकती है. हरियाणा में लोकसभा की कुल 10 सीटें हैं और पिछली बार बीजेपी ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी.
बीजेपी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तेलंगाना और पंजाब में मजबूत सहयोगी ढूंढने में जुटी है. कहा जा रहा है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो चुनाव से पहले आंध्र में टीडीपी, पंजाब में शिअद, तमिलनाडु में एआईएडीएमके और तेलंगाना में बीआरएस से गठबंधन हो सकता है. चारों राज्यों में लोकसभा में 94 सीटें हैं, जिसमें से बीजेपी के 25-30 सीटों पर लड़ने की संभावनाएं है.
बीजेपी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, हिमाचल, उत्तराखंड और दिल्ली में पिछली बार की तरह ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी एक सीट गोरखा जनमुक्ति मोर्चा तो झारखंड में एक सीट आजसू के लिए छोड़ सकती है. ओडिशा के सभी सीटों पर बीजेपी की लड़ने की चर्चा है. हालांकि बीजेडी के बदले रूख से गठबंधन की भी यहां चर्चा है.
महाराष्ट्र में बीजेपी पिछली बार से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. इसकी मुख्य वजह यहां सहयोगी दलों का कमजोर होना है. बीजेपी पिछली बार से 2 ज्यादा सीटों पर यहां चुनाव लड़ सकती है.
कांग्रेस 15 साल में पहली बार 400 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस की कोशिश देशभर में 350 से 370 सीटों पर लड़ने की है.
कांग्रेस ने 2009 में 440, 2014 में 464 और 2019 में 421 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी ने गठबंधन रणनीति के तहत इस पर कंप्रोमाइज करने का फैसला किया है.
कांग्रेस सबसे बड़े राज्य यूपी में 15-17 सीटों पर उम्मीदवार उतार सकती है. यहां सपा से पार्टी गठबंधन में है. बिहार में कांग्रेस 7-8 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. इसी तरह झारखंड में 7 और बंगाल में 5 सीटों पर कांग्रेस अपने सिंबल पर उम्मीदवार उतार सकती है.
महाराष्ट्र में भी कांग्रेस गठबंधन कर चुनाव में उतरने जा रही है. यहां कांग्रेस को 22 सीट मिलने की उम्मीद है. तमिलनाडु में भी कांग्रेस इंडिया गठबंधन के भीतर दूसरे नंबर की पार्टी है. कांग्रेस को यहां 10 सीट मिलने की उम्मीद है.
दिल्ली में कांग्रेस की 2 सीटों पर चुनाव लड़ने की चर्चा है. यहां लोकसभा की कुल 7 सीटें हैं, जिसमें से 5 पर आप चुनाव लड़ सकती है.
कांग्रेस पंजाब की 13, मध्य प्रदेश की 29, हरियाणा की 10, कर्नाटक की 28, तेलंगाना की 17 सीटों पर पिछली बार की तरह ही चुनाव लड़ेगी. यानी यहां किसी से कांग्रेस समझौता नहीं करेगी.
गुजरात में कांग्रेस आम आदमी पार्टी को 1-2 सीट दे सकती है. नॉर्थ ईस्ट की 21 में से कांग्रेस 15 सीटों पर लड़ने की तैयारी में है. गोवा की दोनों सीटों पर कांग्रेस के ही उम्मीदवार मैदान में होंगे.
लौट रहा है गठबंधन पॉलिटिक्स का दौर-
1. 1989 से लेकर 2014 तक देश में गठबंधन पॉलिटिक्स हावी रहा. सरकार बनाने का सिंपल फॉर्मूला था- ज्यादा से ज्यादा जनाधार वाले दलों का जुटान. गठबंधन पॉलिटिक्स में कांग्रेस का दबदबा था. 1989 से 2014 के 25 साल में 15 साल तक देश की बागडोर कांग्रेस के पास रही.
2. 2024 में बीजेपी ने गठबंधन पॉलिटिक्स के मिथक को तोड़ने का काम किया. बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो गई. सरकार के कामकाज में भी इसका असर देखने को मिला. 2014 के बाद गठबंधन पॉलिटिक्स के खत्म होने की भविष्यवाणी की गई.
3. अगस्त 2023 में नीतीश कुमार ने गठबंधन पॉलिटिक्स को पहली बार हवा दी. वह पहली बार कांग्रेस समेत 28 दलों को एक मंच पर लाए. 2019 रिजल्ट के आधार पर जो दल एक मंच पर आए थे, उनके पास करीब 60 प्रतिशत वोट था.
4. विपक्षी एकता को देखते हुए बीजेपी ने भी गठबंधन पॉलिटिक्स पर काम करना शुरू किया है. पार्टी ने पहले 38 दलों को जुटाया और फिर विपक्ष के जेडीयू और आरएलडी को अपने पाले में ले आया.
5. 2019 की तुलना में इस बार बीजेपी लड़ने वाली सीटों की संख्या में 30-35 सीटों की कटौती कर सकती है. कांग्रेस को भी 50 सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है. जीत का स्ट्राइक रेट अगर गड़बड़ हुआ तो गठबंधन के दल ही सरकार चलाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे.