Monday, June 9, 2025
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निर्भया केस की 11वीं बरसी पर मालीवाल बोलीं- ‘बीते दशक में कुछ नहीं बदला’ 

निर्भया केस की 11वीं बरसी पर मालीवाल बोलीं- ‘बीते दशक में कुछ नहीं बदला’ 

स्वाति मालीवाल का सुझाव है कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों में ऐसे विषय शामिल किए जाएं जो लड़कों को महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने तथा सम्मान करने के बारे में सिखाए.

दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने निर्भया घटना की 11वीं बरसी पर शनिवार को बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि बीते एक दशक में कुछ नहीं बदला.दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध केवल बढ़े हैं. फिजियोथेरेपी की 23 वर्षीय प्रशिक्षु से 16 दिसंबर 2012 को दक्षिण दिल्ली में एक बस के भीतर छह लोगों ने दुष्कर्म किया और उससे मारपीट की. इसके बाद चलती बस से उसे फेंक दिया था. उसकी 29 दिसंबर को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल में मौत हो गई. इस घटना ने देशभर के लोगों को आक्रोशित कर दिया था, जिसके बाद देश में यौन हिंसा से जुड़े कई नए कानून बनाए गए थे. इस घटना के बाद पीड़िता को ‘निर्भया’ नाम दिया गया था.

स्वाति मालीवाल ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘निर्भया के साथ 2012 में एक दुखद घटना हुई जब उससे सामूहिक दुष्कर्म किया गया था. वह लड़की तड़प-तड़प कर मर गयी.’ उन्होंने कहा, ‘घटना के वक्त लोग बदलाव की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए थे, लेकिन उस हादसे के वर्षों बाद भी हम उसी जगह पर खड़े हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध दिन प्रति दिन बढ़ रहे हैं. कुछ नहीं बदलेगा जब तक कि अपराधियों को यह भय नहीं होगा कि ऐसे अपराधों के लिए व्यवस्था उन्हें नहीं छोड़ेगी.’

व्यवस्थागत बदलाव जरूरी

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने निश्चित तौर पर सजा मिलने और जल्द सजा दिए जाने का आह्वान किया तथा कहा कि सरकारों के ऐसे संवेदनशील मामले को गंभीरता से लेने चाहिए. मालीवाल के मुताबिक जरूरत इसकी है कि ऐसे मामले में आरोपी को सजा निश्चित तौर पर मिले और जल्दी मिले. सरकारों को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. पुलिस की ताकत और त्वरित अदालतों की संख्या बढ़नी चाहिए. हमें ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है जहां न्याय तेजी से और व्यवस्थागत तरीके से मिले. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष का दावा है कि हर साल 16 दिसंबर को नेता बदलाव लाने के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन ये सब व्यर्थ हैं. निर्भया मामले में आरोपी छह लोगों में से राम सिंह ने मुकदमा शुरू होने के कुछ दिन बाद जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी. एक नाबालिग को सुधार गृह में तीन साल बिताने के बाद 2015 में रिहा कर दिया गया था. अन्य चार आरोपियों मुकेश सिंह (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा (26) और अक्षय कुमार सिंह (31) को दोषी ठहराया गया. उन्हें 20 मार्च 2020 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी.

अपराधियों में कोई डर नहीं

स्वाति मालीवाल ने कहा कि निर्भया घटना के बाद एक सख्त कानून बनाया गया जिससे थोड़ा फर्क पड़ा. अगर कोई पुलिसकर्मी किसी दुष्कर्म पीड़िता की शिकायत दर्ज नहीं करता है तो उसके खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है. दिल्ली महिला आयोग के जरिए हम हमेशा यह सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हों. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ने की रिपोर्ट के बारे में मालीवाल ने कहा कि ऐसे अत्याचार करने वालों के मन में सजा का कोई डर नहीं है.

सबसे ज्यादा अपराध दिल्ली में

एनसीआरबी की नयी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2022 में 19 महानगरों में से महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दिल्ली में दर्ज किए गए. ऐसे अपराध करने वालों में सजा का कोई डर नहीं है. ऐसी घटनाएं भी देखी गई जिसमें नेताओं को ऐसे अपराधियों के साथ तस्वीरें खिंचाते हुए देखा गया. हमारे देश की महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले में क्या हुआ? बृज भूषण शरण सिंह गंभीर आरोप होने के बावजूद आजाद घूम रहा है.

हर रोज 2000 से ज्यादा कॉल

उन्होंने कहा कि दुष्कर्म और यौन शोषण के मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है और आयोग को हर दिन 2,000 से ज्यादा फोन कॉल मिलते हैं. मुझे लगता है कि पुलिस बल की संख्या बढ़ानी चाहिए और उन्हें लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए. क्या पुलिस थानों में पर्याप्त सीसीटीवी कैमरे हैं? पुलिसकर्मियों की लापरवाही के लिए उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है.

स्कूलों में बतौर विषय शामिल हो महिला अपराध

मालीवाल ने सुझाव दिया कि स्कूलों को अपने पाठ्यक्रम में ऐसे विषय शामिल करने चाहिए जो लड़कों को महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने तथा उनका सम्मान करने के बारे में सिखाएं. पाठ्यक्रम में यह शामिल करें कि घरेलू हिंसा क्या है और उसे कैसे रोकें? अगर स्कूलों में नहीं तो बच्चों को कौन समझाएगा कि किसी पुरुष का एक महिला पर हाथ उठाना गलत है?

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