Sunday, June 8, 2025
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“वामपंथ की अवसरवादी सोच ने इस देश के कला और साहित्य का बहुत नुकसान किया है” : दया प्रकाश सिन्हा

“वामपंथ की अवसरवादी सोच ने इस देश के कला और साहित्य का बहुत नुकसान किया है” : दया प्रकाश सिन्हा

“सरकारी ग्रान्ट के भरोसे थिएटर नहीं चल सकता है, समर्पण का भाव जरुरी है” : दया प्रकाश सिन्हा

“साहित्य को मूल्यबोध से प्रेरित होना चाहिए ” : दया प्रकाश सिन्हा

“आज के समय में सिलेबस से अधिक यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को अपडेट करने की जरुरत है” : दया प्रकाश सिन्हा

“मिथकीय चरित्रों का नाटक में प्रयोग हो परन्तु विकृत रूप में नहीं ” : दया प्रकाश सिन्हा

दिल्ली ब्यूरो @RajneetikTarkas.In

कला संकुल, संस्कार भारती के अमर्त्य : साहित्य – कला संवाद के भाग- 3 का आयोजन संस्कार भारती के केन्द्रीय कार्यालय के सभागार में 15 अक्टूबर 2023, रविवार को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस संवाद के आमंत्रित मुख्य अतिथि हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक, नाटककार, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा रहे।

कार्यक्रम की विधिवत् शुरुआत आमंत्रित मुख्य अतिथि के संस्कार भारती के कार्यालय प्रमुख और अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य अशोक तिवारी और कार्यक्रम संयोजक जलज कुमार अनुपम ने दीप प्रज्वलन के साथ किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि का स्वागत संस्कार भारती का स्मृतिचिन्ह और अंगवस्त्र देकर किया गया। अमर्त्य : साहित्य-कला संवाद के इस भाग में जलज कुमार अनुपम से वार्ता के क्रम में दया प्रकाश सिन्हा जी ने कहा कि नाटक एक मुश्किल विधा है। दुर्भाग्य से हिंदी में अच्छे नाटक लिखने वालों की कमी रही है।

 

साहित्य की राजनीति और राजनीति का साहित्य पर श्री सिन्हा ने कहा कि दोनों अपनी अपनी जगह हैं। परन्तु पुरस्कारों की जो राजनीति है और उसमें एक खास विचारधारा का बोलबाला रहा है पिछले समय में, जिसके कारण से प्रतिभावान लोगों को दरकिनार कर दिया गया। इस देश की वामपंथी विचारधारा शुरु से अवसरवादी रही है। वामपंथियों के नाजियों से संबंध की ओर भी उन्होंने ध्यान दिलाया। आज़ादी के बाद के सरकार का भी लगातार इस विचारधारा को संरक्षण मिलता रहा जिसकी वजह से इन्होंने अपनी पकड़ विश्वविद्यालयों और कला साहित्य से जुड़े संगठनों में बना ली। इस देश में वामपंथ की अवसरवादी सोच ने कला और साहित्य का बहुत नुकसान किया है।

साथ ही वक्ता ने भारत में नाटक की शुरुआत के ऊपर कहा मुस्लिम शासकों के काल में कलाओं का सफाया हो गया था परन्तु मंदिरों में अष्टयाम के कारण संगीत बचा रहा। अंग्रेजों के सैनिक छावनियों में मनोरंजन के लिए थिएटर समूहों का आगमन विदेशों से यहाँ हुआ। इसके साथ ही पारसी नाटक ग्रुप की शुरुआत हुई। साथ ही शुरुआती समय के नाटकों पर उर्दू के अधिक प्रभाव को भी उन्होंने रेखांकित किया। अपने समय में हिंदी थिएटरों की कमी के बारे में बताते हुए उन्होंने बताया कि जब मैंने नाटक लिखना शुरू किया तो पृथ्वी थिएटर के अलावा कोई और मॉडल नहीं था। वर्तमान समय की शिक्षा व्यवस्था के ऊपर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए वक्ता ने कहा कि हिंदी के नाटकों की खराब स्थिति के दोषी प्रोफ़ेसर और शिक्षक हैं। सब अभी तक भरतमुनि के नाट्यशास्त्र तक ही हैं, नए मॉडर्न थिएटर को कोई नहीं जानता है न पढ़ाता है। सिलेबस से अधिक यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को अपडेट करने की जरुरत है।
मिथकीय चरित्र को नए रूप में प्रस्तुत करने को लेकर चल गये फैशन के ऊपर उन्होंने कहा कि मिथकीय चरित्र का प्रयोग हो परन्तु उसको विकृत न किया जाये।

दर्शकदीर्घा में बैठे दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र गोविंद उपाध्याय के सवाल जो सम्राट अशोक” और “कथा एक कंस की” के मुख्य चरित्रों पर था उसके जवाब में श्रीसिन्हा ने कहा कि दोनों पात्रों को मैंने ऐतिहासिक उपलब्ध स्त्रोतों के अनुसार ही निर्मित किया है।

इस मौके पर कार्यक्रम संयोजक जलज कुमार अनुपम‌ ने कहा कि अमर्त्य: साहित्य- कला संवाद का मुख्य उद्देश्य साहित्य और ललित कला के सभी अंगों से जुड़े कलाकारों, साहित्यकारों और समीक्षकों से साथ युवाओं को जोड़ना और सेतु स्थापित करना है। कार्यक्रम में उपस्थित युवाओं की भीड़ हमारे हौसलों को बढ़ाने का कार्य कर रही है। भारत के पास ललित कला की एक समृद्ध विरासत है। आने वाले दिनों में अनेक साहित्य और कला के दिग्गज इस मंच पर दिखाई देंगे।

इस सारस्वत अनुष्ठान को संपन्न करने में कार्यक्रम सह संयोजक भूपेन्द्र कुमार भगत और अनामिका, उमेश गुप्ता की अहम भूमिका रही। मंच संचालन व शांति पाठ भूपेन्द्र कुमार भगत ने किया। इस कार्यक्रम में छात्र, शोधार्थी, विद्वान व अनेक साहित्य प्रेमियों की भारी भीड़ रही।

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