वाराणसी कोर्ट का बड़ा फैसला आ गया है। कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं कराने का फैसला सुनाया है। कोर्ट की ओर से अपने फैसले में साफ कर दिया गया है कि मस्जिद में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराकर इसकी उम्र के संबंध में वैज्ञानिक साक्ष्य हासिल नहीं किए जाएंगे। हिंदू पक्ष इस शिवलिंग को प्राचीन विश्वेश्वर महादेव करार दे रहा है। वहीं, मुस्लिम पक्ष इसे लगातार फव्वारा बताते हुए कार्बन डेटिंग का विरोध कर रहा है। ज्ञानवापी परिसर में बिना खोदाई के पर्याप्त सुबूत नहीं मिल सकेंगे यह कहना है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व संयुक्त महानिदेशक डा. बीआर मणि का। श्रृंगार गौरी प्रकरण में शिवलिंग के आयु निर्धारण और आसपास के क्षेत्रों की जांच की मांग मंदिर पक्ष की ओर से की गई है। इस पर आज फैसला आ सकता है। अगर फैसला मंदिर पक्ष में आता है तो मांग के अनुरूप इसकी जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ही मिलेगी। अयोध्या में रामंदिर विवाद में इनके नेतृत्व में ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने पर्याप्त सुबूत जुटाए थे। वो कहते हैं कि अभी कोई ऐसी तकनीक नहीं आई है जिससे किसी संचरना की उम्र या उसकी पूरी बनावट के बारे में सीधे तौर पर जाना जा सके। किसी भी स्थान की जानकारी जुटाने का दो तरीका होता है। डायरेक्ट या इंनडायरेक्ट। डायरेक्ट तरीके में आसपास का एरिया खोदाई करके देखा जा सकता है। जब वह शिवलिंग स्थापित किया गया उस वक्त के लेवल पर कोई कार्बन मिलता है तो उसकी डेटिंग की जा सकती है। यह बिना खोदाई के संभव नहीं होगा।
क्या है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग ऐसी विधि है, जिसकी सहायता से उस वस्तु की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है। मान लीजिए कोई पुरातात्विक खोज की जाती है या फिर वर्षों पुरानी कोई मूर्ति मिल जाती है, तो कैसे पता चलेगा कि वह कितनी पुरानी है। कार्बन डेटिंग से उम्र की गणना की जाती है इसे अब्सल्यूट डेटिंग भी कहा जाता है। इसको लेकर भी कई सवाल है कई बार यह इससे भी सही उम्र का अंदाजा नहीं लग पाता है। हालांकि इसकी सहायता से 40 से 50 हजार साल की सीमा का पता लगाया जा सकता है।