नई दिल्ली/आजादी के महायज्ञ में मां भारती के अनेकों वीर सपूतों ने अपने जीवन का सर्वस्व न्योछावर कर दिया परंतु आजादी के बाद भारत की इस संघर्ष गाथा को जब कलमबद्ध किया जाने लगा तो आजादी के सभी महानायकों के साथ न्याय नहीं हो सका। इतिहास लेखन में एक विचारधारा विशेष के लोगों के हावी होने के चलते अहिंसक आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी और उनके अनुयायियों के संघर्ष को तो भावी पीढ़ी के लोगों को बताया गया परंतु इसी दौरान सशस्त्र संघर्ष के द्वारा ब्रिटिश सरकार की चूलें हिलाने वालों महा नायकों की संघर्ष गाथा को चंद अध्यायों में निपटा दिया गया।
आजादी के अमृत काल में भारत मां के वीर सपूतों के संघर्ष के इन अनछुए पहलुओं को आमजन तक पहुंचाने और भावी पीढ़ी को आजादी के इन महानायकों की संघर्ष गाथा को बताने का बीड़ा उठाया है वरिष्ठ लेखक डॉ मनीष श्रीवास्तव ने।
डॉक्टर श्रीवास्तव ने अपने पहले प्रयास के तहत सशस्त्र संघर्ष के नायकों चंद्रशेखर आजाद, सचिंद्र नाथ सान्याल, मन्मथनाथ, जैसे सूर वीरों की संघर्ष गाथा को तीन पुस्तकों झांसी फाइल्स, काशी और मित्र मेला के जरिए प्रस्तुत किया है। डॉक्टर श्रीवास्तव के लेखन की खास बात यह है कि यह पुस्तकें उनके पूर्वजों की आजादी के महानायकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर किए गए संघर्ष एवं उनके द्वारा लेखक को बताए अनुभव पर आधारित है।
झाँसी फाइल्स की कहानी शुरू होती है १९२६ के आसपास, जिसमे आज़ाद के अज्ञातवास के झाँसीवास के बारे में बताया गया है। जिसके बारे में आम जन को अब तक ज्यादा जानकारी नहीं है। चूँकि आज़ाद का अज्ञातवास लेखक के नाना श्री रुद्रनारायण के निवास से शुरू हुआ था, इसलिए इन प्रसंगों की अधिक जानकारी लेखक को है। इसी दौरान ज़िक्र आता है आज़ाद साहब के कुछ और साथियों भगवान् दास माहौर, सदाशिव मल्कापुरकर और विश्वनाथ वैशय्म्पायन जी का, जो आज़ाद से अंतिम समय तक जुड़े रहे थे। यह कहानी झाँसी और ओरछा के आसपास घूमती रहती है।
लेखक की दूसरी पुस्तक ‘काशी’ में आज़ाद के काशी प्रवास के बारे में वर्णन है। इसमें भारत के आजादी के सशस्त्र संघर्ष के महानायक चंद्रशेखर आजाद की मुलाकात बंगाल के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी सचिन्द्र नाथ सान्याल से होती है जहाँ वह अन्य सुप्रसिद्ध क्रांतिकारियों लाहिड़ी, बिस्मिल, प्रणवेश, मन्मथ साहब से आज़ादी के आन्दोलन की आगे की संघर्ष योजना पर चर्चा करते दिखते हैं । शेखर के आज़ाद बनने की कहानी भी आपको इसी अंक में मिलने वाली है। इसके साथ ही इसमें बिस्मिल के पहले गुरु पंडित गेंदा लाल जी के दुखभरे अंत का ज़िक्र किया गया है ।
मित्रमेला की कहानी शुरू होती है अविभाजित भारत में क्रांतिकारी संघर्ष के बड़े केंद्र में शुमार रहे लाहौर से। मित्र मेला में कहानी शुरू होती है भगत सिंह सुखदेव राजगुरु भाई परमानंद जय चंद्र और जुगल किशोर जी जैसे नामी क्रांतिकारियों के वैचारिक प्रशिक्षण से। जान नेशनल कॉलेज यस आजादी के यह महानायक जय चंद्र जी और जुगल किशोर जी जैसे नामी अध्यापकों और शिक्षाविदों से अपना वैचारिक आधार प्राप्त करते हैं।वीर सावरकर स के जीवन से शुरू हुई कहानी उनके साथियों से मिलाती हुई आप को लंदन ले जायेगी।